बेतहाशा के क्षण
निराशा के क्षणजब लगता है
कि हम रूह होते
तो बेह्तर होता
ळोगो कि नजर
नहीं भेद्ती हमे
बारी बारी से
रूह होते तो
नहीं सोचते
सिर्फ खुद के लिये
दुआएँ करते
बाकी सारी
रूहों के लिये
जो किसी न किसी
शरीर में
दबे तरस रहे हैं
शान्ति के लिए
बेताब हैं
रूह बनने के लिए
पढ़ते ही निकला पहला शब्द ,वही लिख भी रही हूँ .... बेहतरीन ....
ReplyDeleteNivedita ji..bahut bahut dhanaywaad....,
ReplyDeleteक्या पता फिर रूह क्या करती
ReplyDeleteएक अच्छी रूह हमेशा भलाई ही करती है,ऐसा सुना तो है मैंने दीदी....:)..शुक्रिया दीदी
Deleteरुह सबकुछ देख सकती है...उसे कोई नहीं...सुन्दर !!
ReplyDeleteशुक्रिया ऋता दीदी....,
ReplyDelete