Tuesday, July 29, 2014

कदम

तुम अपने कदमो से
जमीन नापो
मै अपने क़दमों से
देखती हूँ तुम
कहाँ कहाँ रूकते हो
और मै कहाँ कहाँ
तुमसे मिलती हू
सुनो

मुझे पता है कि तुम
 रुकोगे नहीं कही

पर मै तो हर जगह
चाहूँगी कुछ देर थमना
क्युकि रास्ते नापने तो
आसान हैं पर उन्हें
समझना है ज़रा मुश्किल

       सीमा श्रीवास्तव

19 comments:

  1. रास्ते लुभाते हैं, रास्ते बुलाते हैं, रास्तों में चढाव होते हैं, रास्तों में ढलान होती है, रास्तों में मंज़िल की चाहत और चलने की थकान होती है, रास्तों में पड़ाव के बीच फासला होता है, पर रास्तों में चलती साँसों और बढ़ते क़दमों के बीच कोई फासला नहीं होता। फिर भी सचमुच "रास्ते नापने तो आसान हैं पर उन्हें समझना है जरा मुश्किल" - सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  2. धन्यवाद मनोजजी आप तो पूरी तरह से कविता की आत्मा मे घुस गये...मेरी कविता की इतनी अच्छी समीक्षा के लिये बह्त बहुत धन्यवाद...

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  3. "रास्ते नापने तो
    आसान हैं पर उन्हें
    समझना है ज़रा मुश्किल"
    सुन्दर रचना.

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  4. सहज में एक दर्शन अभिव्यक्त हुआ है, सुन्दर कृति.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद विनोद सर...

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  5. शुभ प्रभात सीमा बहन

    मै तो हर जगह
    चाहूँगी कुछ देर थमना
    उत्तम पंक्ति
    सादर

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  6. सुंदर भावाभिव्यक्ति...सावन मास की शुभकामनाएँ

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    1. Dhanywaad...,aapko bhi dher sari shubhkaamnaaye

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  7. सुंदर भावाभिव्यक्ति...सावन मास की शुभकामनाएँ

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  8. सुंदर भावाभिव्यक्ति...सावन मास की शुभकामनाएँ

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